शुक्रवार, 8 मई 2020

सच्चे संत निर्मल भावनाओं का सम्मान करते हैं ...

गुरुनानक जी एक गांव में पहुंचे और उस गांव में एक निर्धन गरीब किसान के घर में रुक गए और वहां ठहर कर रात्रि विश्राम भी किया । उस  गांव में एक शोषक सेठ रहता था वह खूब लालची किस्म का था और वह गांव के गरीबों का जमकर शोषण करता था । उसने गरीबों का शोषण  कर खूब धन और वैभव एकत्रित कर लिया था । जब सेठ ने सुना कि उसके गाँव में प्रसिद्द संत गुरुनानक जी ठहरे हैं तो वह भी उनके दर्शन करने हेतु उस गरीब किसान के घर जा पहुंचा ।

उस समय गुरुनानक जी किसान के घर भोजन कर रहे थे । रूखा सूखा भोजन करते देख नानक जी को करता देख सेठ ने नानक जी से कहा कि उसके गांव में जो भी संत महात्मा आते हैं , वह मेरे ही घर में ही रुकते हैं और आप यहाँ ऐसा रूखा और सूखा भोजन कर रहे हैं । भगवान की कृपा से मेरे घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है , और आपसे मेरा निवेदन है कि आप मेरे घर आकर ठहरे और अच्छा स्वादिष्ट भोजन भी कीजिए ।

गुरुनानक जी ने उस सेठ को उत्तर दिया - वत्स तुम्हें किसने कह दिया कि भोजन स्वादिष्ट और रुचिकर नहीं है । मैं तो श्रम की कमाई से उत्पन्न अमृत को खा रहा हूँ । जो आनंद इस रूखे सूखे भोजन को खाने में है वह स्वादिष्ट पकवानों में नहीं है । सेठ को आभास हो गया कि सच्चे संत वे ही होते हैं जो वैभव का नहीं वरन निर्मल भावनाओं का सम्मान करते हैं और शर्म से उसका सर झुक गया और उसने गुरुनानक से क्षमा मांगी ।        

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